भारतवर्ष में कोई 30 विभिन्न पञ्चाङ्ग प्रचलित हैं । [1, 2] इन पञ्चाङ्गों में न केवल तिथि, नक्षत्र आदि के समाप्ति काल में ही वैषम्य पाया जाता है, बल्कि किसी वर्ष या मास के प्रारम्भ होने वाले दिन में भी विविधता पायी जाती है । एक ही संवत् का कोई वर्ष भिन्न-भिन्न मास से शुरू हो सकता है - जैसे विक्रम संवत् चैत्र मास से या कार्त्तिक से । एक ही मास कुछ क्षेत्रों में कृष्णपक्ष से शुरू होता है तो कुछ क्षेत्रों में शुक्लपक्ष से । अतः कृष्णपक्ष के समय इन दोनों क्षेत्रों में एक मास का अन्तर होता है । उदाहरणस्वरूप कृष्णपक्ष से शुरू होने वाले क्षेत्र में जहाँ चैत्र मास होता है, वहीं दूसरे क्षेत्र में पूर्व वर्ष का फल्गुन मास ही चल रहा होता है । बात यहीं खत्म नहीं होती, कुछ पञ्चाङ्गकर्त्ता ऐसा भी पञ्चाङ्ग (उदाहरणस्वरूप - काशी से संस्कृत में प्रकाशित 'श्रीकाशी-विश्वनाथ-पञ्चाङ्गम्') बनाते हैं, जिसमें वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से चालू होता है, किन्तु एक पक्ष के बाद ही वैशाख मास चालू हो जाता है और वर्ष के अन्त में चैत्र मास का कृष्णपक्ष आता है । यह एक विचित्र बात है । कुछ पञ्चाङ्गों के विश्लेषण के लिए देखें स्वर्गीय पं० जीवनाथ राय का लेख । [3]
सौर पञ्चाङ्गों में भी विविधता पाई जाती है । सूर्य की समान निरयन मेष राशि की स्थिति में तमिलनाडु में चैत्र (=चित्तिरै) मास माना जाता है तो असम और पश्चिम बङ्गाल में वैशाख । यही नहीं, कोई सौर मास कब शुरू होगा, इसके लिए भी कोई समरूपता नहीं है - या तो जिस दिन सूर्य का किसी खास राशि में संक्रमण होता है उस दिन से या उसके दूसरे दिन से या तीसरे दिन से । [4, 5]
चान्द्र तिथि गणना में भी एक पञ्चाङ्ग दूसरे पञ्चाङ्ग से मेल नहीं खाता । एक ही क्षेत्र से प्रकाशित दो पञ्चाङ्गों में तिथि समाप्ति काल में तीन-चार घंटों का अन्तर भी देखने को मिलता है । उदाहरणस्वरूप- 14 जनवरी 1982 ई० को माघ कृष्णपक्ष पञ्चमी तिथि का समाप्ति काल श्रीकाशी-विश्वनाथ-पञ्चाङ्गम् में रात्रि को 7.15 बजे दिया गया है, जबकि वाराणसी से ही प्रकाशित चिन्ताहरण जन्त्री (भाग्योदय पञ्चाङ्ग) में दोपहर को 3.35 बजे है । इस प्रकार इन दोनों पञ्चाङ्गों में तिथि समाप्ति काल के बारे में 3 घण्टे 40 मिनट का वैषम्य है । श्री रङ्गाचार्य ने यहां तक लिखा है कि यदि पञ्चाङ्गों में तिथि, नक्षत्र इत्यादि के मामले में इसी प्रकार की विविधता जारी रही तो सम्भव है कि हिन्दुओं का पञ्चाङ्ग पर से विश्वास ही उठ जाय । [6]
अधिक मास और क्षय मास के बारे में भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विविधता पायी जाती है । [7] इसके चलते दुर्गापूजा, दीपावली, वसन्त पञ्चमी (सरस्वती पूजा) इत्यादि प्रसिद्ध त्योहार भारत के सभी क्षेत्रों में एक ही समय मनाये जाने के बजाय एक महीने के अन्तर से भी मनाये जाते हैं ।[8] कभी-कभी पण्डितों के बीच यह विवाद भी छिड़ जाता है कि अमुक वर्ष का अमुक मास अधिक मास है या नहीं । ऐसा ही विवाद सन् 1963 में विजया दशमी और दीपावली की तारीख के बारे में हुआ था । कांची कामकोट्टि पीठम् द्वारा प्रतिष्ठित ज्योतिषियों का सम्मेलन बुलाया गया था, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि उस वर्ष का आश्विन मास अधिक मास नहीं है । यह भूमध्य दृग्गणित से भी मेल खाता था । कांची पीठम् ने इस निर्णय का अनुमोदन किया था, परन्तु भारत सरकार ने अन्य विचारधारावाले पण्डितों का निर्णय स्वीकार किया जिसके अनुसार आश्विन मास अधिक मास था और 25-26 अक्तूबर को दशहरा एवं 14-15 नवम्बर को दीपावली की छुट्टी का निर्देश दिया । [9] ऐसा ही विवाद सन् 1982 में भी खड़ा हुआ । Lahiri's Ephemeris के अनुसार आश्विन मास अधिक मास था और विजया दशमी 27 अक्तूबर एवं दीपावली 15 नवम्बर को पड़ती थी । परन्तु सनातन धर्म महासभा ने 14 फरवरी को निर्णय लिया कि 27 सितम्बर को विजया दशमी होगी और दीपावली 16 अक्तूबर को । [10]
सौर पञ्चाङ्गों में सौर मास के प्रथम दिन के प्रारम्भ के लिए भिन्न-भिन्न नियम के कारण, चान्द्र-सौर (Luni-solar) पञ्चाङ्गों में मासों के नामकरण हेतु अमान्त और पूर्णिमान्त पद्धति के अनुसरण के कारण; तिथिक्षय एवं तिथिद्वय के कारण; वर्षों की अवधि के लिए विभिन्न नियमों के प्रयोग से एवं अधिक मासों में अन्तर के कारण कई वर्षों के अन्तराल पर घटी दो घटनाओं के बीच ठीक-ठीक अन्तर की गणना करना अकसर एक बहुत ही जटिल कार्य हो जाता है । इस कठिनाई को दूर करने के लिए एक आसान उपाय यह है कि वर्ष और मास को त्यागकर किसी निश्चित निर्देश-क्षण (epoch) से विगत केवल दिवसों की क्रमिक संख्याङ्कन पद्धति (Consecutive Numbering System) अपनायी जाय । इस उपज्ञा का श्रेय आर्यभट को जाता है जिसने इस का सर्वप्रथम प्रयोग ईसा की पाँचवीं शताब्दी में किया और इसे अहर्गण की संज्ञा दी । [11] पश्चिम में फ्रेंच विद्वान् Joseph Justus Scaliger (1540-1609) ने इसे जुलियन दिवस संख्या (Julian Day Number) की संज्ञा दी । [11] निर्देश-क्षण के लिए स्कालिगर ने 1 जनवरी, 4713 ई० पू० ग्रीनवीच मध्याह्न (=5.30 बजे शाम भारतीय मानक समय) को चुना । आर्यभट ने अहर्गण के लिए निर्देश-क्षण महायुग के शून्य दिवस को चुना । इस अहर्गण की संख्या बहुत बड़ी होने के कारण बाद के ज्योतिर्विदों ने निर्देश-क्षण के लिए कलियुग के प्रारम्भिक क्षण को अपनाया जो 3102 ई० पू० के 17-18 फरवरी को उज्जैन के लिए ठीक अर्धरात्रि से [11] अर्थात् भा.मा.स. के अनुसार 18 फरवरी को 0.16 बजे सुबह से माना गया है । इस क्षण से विगत दिवसों को कलियुगादि अहर्गण के नाम से जाना जाता है ।
रोमन कैलण्डर की किसी दी हुई तारीख को जुलियन दिवस संख्या (JDN) एवं कलियुगादि अहर्गण (KDN=Kali Day Number)निकालने के लिए चार तालिकाएँ (TABLES) प्रस्तुत की गयी हैं । TABLE-I में 4401 ई०पू० (BC) से लेकर 3200 ई० (AD) तक 400 वर्षों के अन्तराल पर JDN एवं KDN दिये गये हैं । TABLE-II में से 100 वर्षों के अन्तराल पर अतिरिक्त वर्षों के लिए योज्य दिवसों की संख्या दी गयी है जबकि TABLE-III में चार वर्षों के अन्तराल पर । TABLE-IV में 0 से 3 अतिरिक्त वर्षों के लिए प्रत्येक महीने की 1 तारीख को कुल योज्य दिवसों की संख्या दी गयी है । यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी तालिकाओं में अतिरिक्त वर्ष किसी अधिवर्ष (Leap year) के बाद ही लेने पर योज्य दिवसों की संख्या सही होगी । यदि ऐसा नहीं है तो नोट संख्या 2 और 3 का विशेष ख्याल रखना जरूरी है । अगर JDN और KDN किसी महीने की 1 तारीख के बजाय किसी अन्य तारीख को निकालना हो तो 1 तारीख के बाद के अतिरिक्त दिवसों की संख्या जोड़ देनी चाहिए । उदाहरणस्वरूप 25 मार्च को मार्च 1+24 दिन लिखें । शेष दिये गये उदाहरणों से स्पष्ट हो जायगा ।
इन तालिकाओं से प्राप्त JDN की जाँच पाठकगण Astronomical Ephemeris [12] एवं Tables of the Sun [13] से कर सकते हैं । इन दोनों सन्दर्भों में दी गयी तालिकाओं की अपेक्षा प्रस्तुत तालिकाएँ समझने और प्रयोग करने में ज्यादा आसान हैं ।
संगणक (Computer) से JDN एवं KDN ज्ञात करना
रोमन कैलण्डर की दी हुई तारीख को यदि (d, m, y) के रूप में निरूपित किया जाय जहां d=date, m=month और y=year एवं जनवरी, फरवरी, मार्च इत्यादि महीनों को क्रमशः 1, 2, 3, .............,12 से तो JDN एवं KDN निम्नलिखित सूत्रों से ज्ञात किये जा सकते हैं -
JDN = INT (365.25*a) + INT (30.6*(b+1)) + c + d - 63
KDN = JDN-588466
यहाँ a, b और c के मान इस प्रकार ज्ञात करें -
(1) a का मानः ई०पू० के लिए y का मान ऋणात्मक लेना है, जैसे-
100 ई०पू० के लिए y = - 100
ई०पू० के लिएः a = y + 4713
ई० पश्चात् के लिएः a = y + 4712
यदि m<= 2 तो a = a-1
सौर पञ्चाङ्गों में भी विविधता पाई जाती है । सूर्य की समान निरयन मेष राशि की स्थिति में तमिलनाडु में चैत्र (=चित्तिरै) मास माना जाता है तो असम और पश्चिम बङ्गाल में वैशाख । यही नहीं, कोई सौर मास कब शुरू होगा, इसके लिए भी कोई समरूपता नहीं है - या तो जिस दिन सूर्य का किसी खास राशि में संक्रमण होता है उस दिन से या उसके दूसरे दिन से या तीसरे दिन से । [4, 5]
चान्द्र तिथि गणना में भी एक पञ्चाङ्ग दूसरे पञ्चाङ्ग से मेल नहीं खाता । एक ही क्षेत्र से प्रकाशित दो पञ्चाङ्गों में तिथि समाप्ति काल में तीन-चार घंटों का अन्तर भी देखने को मिलता है । उदाहरणस्वरूप- 14 जनवरी 1982 ई० को माघ कृष्णपक्ष पञ्चमी तिथि का समाप्ति काल श्रीकाशी-विश्वनाथ-पञ्चाङ्गम् में रात्रि को 7.15 बजे दिया गया है, जबकि वाराणसी से ही प्रकाशित चिन्ताहरण जन्त्री (भाग्योदय पञ्चाङ्ग) में दोपहर को 3.35 बजे है । इस प्रकार इन दोनों पञ्चाङ्गों में तिथि समाप्ति काल के बारे में 3 घण्टे 40 मिनट का वैषम्य है । श्री रङ्गाचार्य ने यहां तक लिखा है कि यदि पञ्चाङ्गों में तिथि, नक्षत्र इत्यादि के मामले में इसी प्रकार की विविधता जारी रही तो सम्भव है कि हिन्दुओं का पञ्चाङ्ग पर से विश्वास ही उठ जाय । [6]
अधिक मास और क्षय मास के बारे में भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विविधता पायी जाती है । [7] इसके चलते दुर्गापूजा, दीपावली, वसन्त पञ्चमी (सरस्वती पूजा) इत्यादि प्रसिद्ध त्योहार भारत के सभी क्षेत्रों में एक ही समय मनाये जाने के बजाय एक महीने के अन्तर से भी मनाये जाते हैं ।[8] कभी-कभी पण्डितों के बीच यह विवाद भी छिड़ जाता है कि अमुक वर्ष का अमुक मास अधिक मास है या नहीं । ऐसा ही विवाद सन् 1963 में विजया दशमी और दीपावली की तारीख के बारे में हुआ था । कांची कामकोट्टि पीठम् द्वारा प्रतिष्ठित ज्योतिषियों का सम्मेलन बुलाया गया था, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि उस वर्ष का आश्विन मास अधिक मास नहीं है । यह भूमध्य दृग्गणित से भी मेल खाता था । कांची पीठम् ने इस निर्णय का अनुमोदन किया था, परन्तु भारत सरकार ने अन्य विचारधारावाले पण्डितों का निर्णय स्वीकार किया जिसके अनुसार आश्विन मास अधिक मास था और 25-26 अक्तूबर को दशहरा एवं 14-15 नवम्बर को दीपावली की छुट्टी का निर्देश दिया । [9] ऐसा ही विवाद सन् 1982 में भी खड़ा हुआ । Lahiri's Ephemeris के अनुसार आश्विन मास अधिक मास था और विजया दशमी 27 अक्तूबर एवं दीपावली 15 नवम्बर को पड़ती थी । परन्तु सनातन धर्म महासभा ने 14 फरवरी को निर्णय लिया कि 27 सितम्बर को विजया दशमी होगी और दीपावली 16 अक्तूबर को । [10]
सौर पञ्चाङ्गों में सौर मास के प्रथम दिन के प्रारम्भ के लिए भिन्न-भिन्न नियम के कारण, चान्द्र-सौर (Luni-solar) पञ्चाङ्गों में मासों के नामकरण हेतु अमान्त और पूर्णिमान्त पद्धति के अनुसरण के कारण; तिथिक्षय एवं तिथिद्वय के कारण; वर्षों की अवधि के लिए विभिन्न नियमों के प्रयोग से एवं अधिक मासों में अन्तर के कारण कई वर्षों के अन्तराल पर घटी दो घटनाओं के बीच ठीक-ठीक अन्तर की गणना करना अकसर एक बहुत ही जटिल कार्य हो जाता है । इस कठिनाई को दूर करने के लिए एक आसान उपाय यह है कि वर्ष और मास को त्यागकर किसी निश्चित निर्देश-क्षण (epoch) से विगत केवल दिवसों की क्रमिक संख्याङ्कन पद्धति (Consecutive Numbering System) अपनायी जाय । इस उपज्ञा का श्रेय आर्यभट को जाता है जिसने इस का सर्वप्रथम प्रयोग ईसा की पाँचवीं शताब्दी में किया और इसे अहर्गण की संज्ञा दी । [11] पश्चिम में फ्रेंच विद्वान् Joseph Justus Scaliger (1540-1609) ने इसे जुलियन दिवस संख्या (Julian Day Number) की संज्ञा दी । [11] निर्देश-क्षण के लिए स्कालिगर ने 1 जनवरी, 4713 ई० पू० ग्रीनवीच मध्याह्न (=5.30 बजे शाम भारतीय मानक समय) को चुना । आर्यभट ने अहर्गण के लिए निर्देश-क्षण महायुग के शून्य दिवस को चुना । इस अहर्गण की संख्या बहुत बड़ी होने के कारण बाद के ज्योतिर्विदों ने निर्देश-क्षण के लिए कलियुग के प्रारम्भिक क्षण को अपनाया जो 3102 ई० पू० के 17-18 फरवरी को उज्जैन के लिए ठीक अर्धरात्रि से [11] अर्थात् भा.मा.स. के अनुसार 18 फरवरी को 0.16 बजे सुबह से माना गया है । इस क्षण से विगत दिवसों को कलियुगादि अहर्गण के नाम से जाना जाता है ।
रोमन कैलण्डर की किसी दी हुई तारीख को जुलियन दिवस संख्या (JDN) एवं कलियुगादि अहर्गण (KDN=Kali Day Number)निकालने के लिए चार तालिकाएँ (TABLES) प्रस्तुत की गयी हैं । TABLE-I में 4401 ई०पू० (BC) से लेकर 3200 ई० (AD) तक 400 वर्षों के अन्तराल पर JDN एवं KDN दिये गये हैं । TABLE-II में से 100 वर्षों के अन्तराल पर अतिरिक्त वर्षों के लिए योज्य दिवसों की संख्या दी गयी है जबकि TABLE-III में चार वर्षों के अन्तराल पर । TABLE-IV में 0 से 3 अतिरिक्त वर्षों के लिए प्रत्येक महीने की 1 तारीख को कुल योज्य दिवसों की संख्या दी गयी है । यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी तालिकाओं में अतिरिक्त वर्ष किसी अधिवर्ष (Leap year) के बाद ही लेने पर योज्य दिवसों की संख्या सही होगी । यदि ऐसा नहीं है तो नोट संख्या 2 और 3 का विशेष ख्याल रखना जरूरी है । अगर JDN और KDN किसी महीने की 1 तारीख के बजाय किसी अन्य तारीख को निकालना हो तो 1 तारीख के बाद के अतिरिक्त दिवसों की संख्या जोड़ देनी चाहिए । उदाहरणस्वरूप 25 मार्च को मार्च 1+24 दिन लिखें । शेष दिये गये उदाहरणों से स्पष्ट हो जायगा ।
इन तालिकाओं से प्राप्त JDN की जाँच पाठकगण Astronomical Ephemeris [12] एवं Tables of the Sun [13] से कर सकते हैं । इन दोनों सन्दर्भों में दी गयी तालिकाओं की अपेक्षा प्रस्तुत तालिकाएँ समझने और प्रयोग करने में ज्यादा आसान हैं ।
संगणक (Computer) से JDN एवं KDN ज्ञात करना
रोमन कैलण्डर की दी हुई तारीख को यदि (d, m, y) के रूप में निरूपित किया जाय जहां d=date, m=month और y=year एवं जनवरी, फरवरी, मार्च इत्यादि महीनों को क्रमशः 1, 2, 3, .............,12 से तो JDN एवं KDN निम्नलिखित सूत्रों से ज्ञात किये जा सकते हैं -
JDN = INT (365.25*a) + INT (30.6*(b+1)) + c + d - 63
KDN = JDN-588466
यहाँ a, b और c के मान इस प्रकार ज्ञात करें -
(1) a का मानः ई०पू० के लिए y का मान ऋणात्मक लेना है, जैसे-
100 ई०पू० के लिए y = - 100
ई०पू० के लिएः a = y + 4713
ई० पश्चात् के लिएः a = y + 4712
यदि m<= 2 तो a = a-1
(2) b का मानः यदि m >= 2 तो b = m+12 अन्यथा b = m
(3) c का मानः 4 अक्तूबर 1582 या इसके पहले की तारीख के लिए c=0, परन्तु 15 अक्तूबर 1582 या इसके बाद की किसी तारीख के लिए अर्थात् ग्रिगॉरियन कैलण्डर के लिए c का मान निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त करें ।
c = 35 - k + INT (k/4)
जहाँ k = INT ((a-312)/100)
उपर्युक्त सूत्रों में INT पूर्णाङ्क (INTEGER) निरूपित करता है, जैसे INT (61.9)=61 एवं * गुणा चिह्न का द्योतक है ।
ज्ञात अहर्गण से तारीख निर्धारित करना
आर्यभटीय की एक ताड़पत्र पाण्डुलिपि की पुष्पिका में इस पाण्डुलिपि का प्रतिलेखन समाप्ति काल कटपयादि पद्धति में सिर्फ कलियुगादि अहर्गण के रूप में दिया हुआ है जो इस प्रकार है -
'सेव्यो दुग्धाब्धितल्पः' एषुतिक्कूटियन्नत्ते अहर्गणम् (in Malayalam, meaning 16,99,887 is the Kali day of the completion of the transcription) [14]
इस अहर्गण से रोमन कैलण्डर की तारीख तालिका I से IV का उपयोग कर इस प्रकार निर्धारित की जा सकती है -
1699817
-1570892 तालिका-I से निकटतम संख्या घटायें 1200 AD
--------------
128925
-109575 तालिका-II से निकटतम संख्या घटायें + 300 वर्ष
--------------
19350
-18993 तालिका-III से निकटतम संख्या घटायें + 52 वर्ष
--------------
357
-335 तालिका-IV से निकटतम संख्या घटायें + 0 वर्ष + 1 दिसम्बर
--------------
+ 22 दिन
अतः 1699817 कलियुगादि अहर्गण
= 1200 ई० + 300 वर्ष + 52 वर्ष + 0 वर्ष + 1 दिसम्बर + 22 दिन
= 23 दिसम्बर, 1552 ई० (शुक्रवार)
आर्यभट जब पूरे 23 वर्ष के हुए उस दिन कलियुगादि अहर्गण उन्हीं द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार 1314931 दिन प्राप्त होता है । [15]
उपर्युक्त विधि से ही पाठकगण आसानी से इसकी सङ्गत तारीख ज्ञात कर सकते हैं एवं इसकी जाँच आर्यभटीय के सम्पादक महोदय द्वारा दी गयी तारीख [15] (21 मार्च 499 ई०) से कर सकते हैं ।
केरल के प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् एवं षड्दर्शन पारंगत नीलकण्ठ सोमयाजी (1444-1545) ने अपने ज्योतिषग्रन्थ 'तन्त्र संग्रह' के प्रारम्भिक एवं अन्तिम श्लोक में इस कृति के प्रारम्भ एवं अन्त करने का काल अहर्गण के रूप में दिया है -
हे विष्णो निहितं कृत्स्नं जगत् त्वय्येव कारणे ।
ज्योतिषां ज्योतिषे तस्मै नमो नारायणाय ते ॥१.१॥
गोलः कालः क्रिया चापि द्योत्यतेऽत्र मया स्फुटम् ।
लक्ष्मीशनिहितध्यानै रिष्टं सर्वं हि लभ्यते ॥८.४०॥
'हे विष्णो निहितं कृत्स्नं' एवं 'लक्ष्मीशनिहितध्यानैः' का प्रयोग न केवल सामान्य अर्थ में किया गया है, बल्कि इनमें कटपयादि पद्धति में क्रमशः प्रारम्भ काल (1680548) एवं समाप्ति काल (1680553) अहर्गण के रूप में निहित है । [16] गणना करने पर रोमन केलण्डर में सङ्गत दिनाङ्क क्रमशः 22 मार्च 1500 एवं 27 मार्च 1500 प्राप्त होता है ।
'सिद्धान्त दर्पण' नामक अन्य ज्योतिष पुस्तिका [17] की स्वोपज्ञ व्याख्या में नीलकण्ठ सोमयाजी ने अपना जन्मकाल अहर्गण के रूप में दिया है -
"स्वजन्मकालज्ञापनार्थं चैवमुक्तम् । तदा अहर्गणश्च 'त्यजाम्यज्ञतां तर्कैः' (1660181) इति । Here, Nilkantha himself says that he was born on the Kali day 1660181, wich works out to AD 1443, Dec." [18] परन्तु श्री के॰ वी॰ शर्मा ('सिद्धान्त दर्पण और 'तन्त्र संग्रह' के सम्पादक) ने 'तन्त्र संग्रह' में इस तारीख को सुधार कर इस प्रकार लिखा है -
".................Kali day 1660181, wich works out to AD 1444, June 14." [19]
इस सुधार के बाद भी इसमें तीन दिन की अशुद्धि रह गयी है । रोमन कैलण्डर में कलि दिवस 1660181 की सङ्गत तारीख 17 जून 1444 (बुधवार) है ।
टिप्पणी:
1. Calendar Reform and our Debt to Our Ancestors-I, p. 470.
2. Standardising and Modernising Our Panchangas, p. 40.
3. स्वतन्त्र भारत में काल गणना, पृष्ठ 338-340.
4. Calendar Reform vs Dharmasastras, p. 64.
5. सिद्धान्त-दर्पण, Vol.-II, pp. 294-296.
6. Unification in Panchangas, p. 786.
7. Kshaya and Adhika Lunar months in 1982-83 - I, pp. 324-325.
8. Kshaya and Adhika Lunar months in 1982-83 - II, p. 397.
9. Disagreement in Almanacs: Conflicting Festival and Other Dates, p. 704.
10. वही, पृष्ठ 704.
11. Standardising and Modernising Our panchangas - II, p. 214.
12. The Astronomical Ephemeris (1971), p.447
13. Tables of the Sun, pp.xvii, 1-14
14. आर्यभटीय of आर्यभट, पृष्ठ 164.
15. वही, पृष्ठ 95.
16. तन्त्रसंग्रह, p. xxxv
17. इसमें केवल 32 श्लोक हैं ।
18. सिद्धान्त दर्पण, p. xxvi
19. तन्त्रसंग्रह, p. xxxvi
सन्दर्भ ग्रन्थ (AM=The Astrological Magazine)
1. K. D. Abhayankar: "Calendar Reform and Our Debt to Our Ancestors-I", AM, June 1982, pp. 470-472.
2. Commodore S. K. Chatterjee: "Standardising and Modernising Our Panchangas", Part-I, AM, Jan.1985, pp. 38-41; Part-II, AM, Feb. 1985, pp. 213-217.
3. प० जीवनाथ रायः "स्वतन्त्र भारत में काल-गणना", सारस्वत कुसुमाञ्जलि (आचार्य श्री जयमन्त मिश्राभिनन्दनग्रन्थः), 1994, इन्दिरा प्रकाशन, दरभंगा, पृष्ठ 338-342.
4. A. K. Chakravarty: "Calendar Reform Vs Dharmasastras" AM, Jan 1990, pp. 63-66.
5. "सिद्धान्त-दर्पण" [सामन्त चन्द्रशेखर कृत] (अंग्रेजी अनुवाद), Vol. II, अनुवादक एवं व्याख्याकार - अरुण कुमार उपाध्याय, प्रकाशक - नाग पब्लिशर्स, दिल्ली, 1998.
6. Iranganti Rangacharya: "Unification in Panchangas", AM, Oct. 1993, pp. 784, 786.
7. Commodore S. K. Chatterjee: "Kshaya and Adhika Lunar Months in 1982-83", Part-I, AM, April 1982, pp. 323-325, 356; Part-II, AM, May 1982. pp. 391-397.
8. K. Krishna Rao; "Disagreement in Almanacs: Conflicting festival and other Dates", AM, Sept. 1982, pp. 702-704.
9. The Astronomical Ephemeris for the year 1971, HMSO, London, 1969.
10. N. C. Lahiri: "Tables of the Sun", Astro-Research Bureau, Calcutta, 1973.
11. "आर्यभटीय of आर्यभट", Critically edited with Introduction, English Translation, Notes, Comments and Indexes by Kripa Shankar Shukla and K.V. Sarma, Indian National science Academy, New Delhi, 1976, pp.Lxxvii+219.
12. "सिद्धान्त दर्पणम् of नीलकण्ठ सोमयाजी" with auto-commentary, critically edited by K. V. Sarma, V. V. I., Sadhu Ashram, Hoshiarpur, 1976, pp. xxviii+54.
13. "तन्त्र संग्रह of नीलकण्ठ सोमयाजी" with युक्तिदीपिका and लघुविवृत्ति of शङ्कर Critically edited by K. V. Sarma, V. V. I., Sadhu Ashram, Hoshiarpur, 1977.
--------------------------------------------------------------------
Abbreviations
-------------
J = Julian
G = Gregorian
JDN = Julian Day Number
KDN = Kali Day Number
Julian Calendar: On and before 4 Oct. 1582 AD
Gregorian Calendar: On and after 15 Oct. 1582 AD
--------------------------------------------------------------------
*Note 1:
On 18 Feb 3102 BC, Kali Day No. = 0
On this date Julian Day No. = 588466
(3) c का मानः 4 अक्तूबर 1582 या इसके पहले की तारीख के लिए c=0, परन्तु 15 अक्तूबर 1582 या इसके बाद की किसी तारीख के लिए अर्थात् ग्रिगॉरियन कैलण्डर के लिए c का मान निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त करें ।
c = 35 - k + INT (k/4)
जहाँ k = INT ((a-312)/100)
उपर्युक्त सूत्रों में INT पूर्णाङ्क (INTEGER) निरूपित करता है, जैसे INT (61.9)=61 एवं * गुणा चिह्न का द्योतक है ।
ज्ञात अहर्गण से तारीख निर्धारित करना
आर्यभटीय की एक ताड़पत्र पाण्डुलिपि की पुष्पिका में इस पाण्डुलिपि का प्रतिलेखन समाप्ति काल कटपयादि पद्धति में सिर्फ कलियुगादि अहर्गण के रूप में दिया हुआ है जो इस प्रकार है -
'सेव्यो दुग्धाब्धितल्पः' एषुतिक्कूटियन्नत्ते अहर्गणम् (in Malayalam, meaning 16,99,887 is the Kali day of the completion of the transcription) [14]
इस अहर्गण से रोमन कैलण्डर की तारीख तालिका I से IV का उपयोग कर इस प्रकार निर्धारित की जा सकती है -
1699817
-1570892 तालिका-I से निकटतम संख्या घटायें 1200 AD
--------------
128925
-109575 तालिका-II से निकटतम संख्या घटायें + 300 वर्ष
--------------
19350
-18993 तालिका-III से निकटतम संख्या घटायें + 52 वर्ष
--------------
357
-335 तालिका-IV से निकटतम संख्या घटायें + 0 वर्ष + 1 दिसम्बर
--------------
+ 22 दिन
अतः 1699817 कलियुगादि अहर्गण
= 1200 ई० + 300 वर्ष + 52 वर्ष + 0 वर्ष + 1 दिसम्बर + 22 दिन
= 23 दिसम्बर, 1552 ई० (शुक्रवार)
आर्यभट जब पूरे 23 वर्ष के हुए उस दिन कलियुगादि अहर्गण उन्हीं द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार 1314931 दिन प्राप्त होता है । [15]
उपर्युक्त विधि से ही पाठकगण आसानी से इसकी सङ्गत तारीख ज्ञात कर सकते हैं एवं इसकी जाँच आर्यभटीय के सम्पादक महोदय द्वारा दी गयी तारीख [15] (21 मार्च 499 ई०) से कर सकते हैं ।
केरल के प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् एवं षड्दर्शन पारंगत नीलकण्ठ सोमयाजी (1444-1545) ने अपने ज्योतिषग्रन्थ 'तन्त्र संग्रह' के प्रारम्भिक एवं अन्तिम श्लोक में इस कृति के प्रारम्भ एवं अन्त करने का काल अहर्गण के रूप में दिया है -
हे विष्णो निहितं कृत्स्नं जगत् त्वय्येव कारणे ।
ज्योतिषां ज्योतिषे तस्मै नमो नारायणाय ते ॥१.१॥
गोलः कालः क्रिया चापि द्योत्यतेऽत्र मया स्फुटम् ।
लक्ष्मीशनिहितध्यानै रिष्टं सर्वं हि लभ्यते ॥८.४०॥
'हे विष्णो निहितं कृत्स्नं' एवं 'लक्ष्मीशनिहितध्यानैः' का प्रयोग न केवल सामान्य अर्थ में किया गया है, बल्कि इनमें कटपयादि पद्धति में क्रमशः प्रारम्भ काल (1680548) एवं समाप्ति काल (1680553) अहर्गण के रूप में निहित है । [16] गणना करने पर रोमन केलण्डर में सङ्गत दिनाङ्क क्रमशः 22 मार्च 1500 एवं 27 मार्च 1500 प्राप्त होता है ।
'सिद्धान्त दर्पण' नामक अन्य ज्योतिष पुस्तिका [17] की स्वोपज्ञ व्याख्या में नीलकण्ठ सोमयाजी ने अपना जन्मकाल अहर्गण के रूप में दिया है -
"स्वजन्मकालज्ञापनार्थं चैवमुक्तम् । तदा अहर्गणश्च 'त्यजाम्यज्ञतां तर्कैः' (1660181) इति । Here, Nilkantha himself says that he was born on the Kali day 1660181, wich works out to AD 1443, Dec." [18] परन्तु श्री के॰ वी॰ शर्मा ('सिद्धान्त दर्पण और 'तन्त्र संग्रह' के सम्पादक) ने 'तन्त्र संग्रह' में इस तारीख को सुधार कर इस प्रकार लिखा है -
".................Kali day 1660181, wich works out to AD 1444, June 14." [19]
इस सुधार के बाद भी इसमें तीन दिन की अशुद्धि रह गयी है । रोमन कैलण्डर में कलि दिवस 1660181 की सङ्गत तारीख 17 जून 1444 (बुधवार) है ।
टिप्पणी:
1. Calendar Reform and our Debt to Our Ancestors-I, p. 470.
2. Standardising and Modernising Our Panchangas, p. 40.
3. स्वतन्त्र भारत में काल गणना, पृष्ठ 338-340.
4. Calendar Reform vs Dharmasastras, p. 64.
5. सिद्धान्त-दर्पण, Vol.-II, pp. 294-296.
6. Unification in Panchangas, p. 786.
7. Kshaya and Adhika Lunar months in 1982-83 - I, pp. 324-325.
8. Kshaya and Adhika Lunar months in 1982-83 - II, p. 397.
9. Disagreement in Almanacs: Conflicting Festival and Other Dates, p. 704.
10. वही, पृष्ठ 704.
11. Standardising and Modernising Our panchangas - II, p. 214.
12. The Astronomical Ephemeris (1971), p.447
13. Tables of the Sun, pp.xvii, 1-14
14. आर्यभटीय of आर्यभट, पृष्ठ 164.
15. वही, पृष्ठ 95.
16. तन्त्रसंग्रह, p. xxxv
17. इसमें केवल 32 श्लोक हैं ।
18. सिद्धान्त दर्पण, p. xxvi
19. तन्त्रसंग्रह, p. xxxvi
सन्दर्भ ग्रन्थ (AM=The Astrological Magazine)
1. K. D. Abhayankar: "Calendar Reform and Our Debt to Our Ancestors-I", AM, June 1982, pp. 470-472.
2. Commodore S. K. Chatterjee: "Standardising and Modernising Our Panchangas", Part-I, AM, Jan.1985, pp. 38-41; Part-II, AM, Feb. 1985, pp. 213-217.
3. प० जीवनाथ रायः "स्वतन्त्र भारत में काल-गणना", सारस्वत कुसुमाञ्जलि (आचार्य श्री जयमन्त मिश्राभिनन्दनग्रन्थः), 1994, इन्दिरा प्रकाशन, दरभंगा, पृष्ठ 338-342.
4. A. K. Chakravarty: "Calendar Reform Vs Dharmasastras" AM, Jan 1990, pp. 63-66.
5. "सिद्धान्त-दर्पण" [सामन्त चन्द्रशेखर कृत] (अंग्रेजी अनुवाद), Vol. II, अनुवादक एवं व्याख्याकार - अरुण कुमार उपाध्याय, प्रकाशक - नाग पब्लिशर्स, दिल्ली, 1998.
6. Iranganti Rangacharya: "Unification in Panchangas", AM, Oct. 1993, pp. 784, 786.
7. Commodore S. K. Chatterjee: "Kshaya and Adhika Lunar Months in 1982-83", Part-I, AM, April 1982, pp. 323-325, 356; Part-II, AM, May 1982. pp. 391-397.
8. K. Krishna Rao; "Disagreement in Almanacs: Conflicting festival and other Dates", AM, Sept. 1982, pp. 702-704.
9. The Astronomical Ephemeris for the year 1971, HMSO, London, 1969.
10. N. C. Lahiri: "Tables of the Sun", Astro-Research Bureau, Calcutta, 1973.
11. "आर्यभटीय of आर्यभट", Critically edited with Introduction, English Translation, Notes, Comments and Indexes by Kripa Shankar Shukla and K.V. Sarma, Indian National science Academy, New Delhi, 1976, pp.Lxxvii+219.
12. "सिद्धान्त दर्पणम् of नीलकण्ठ सोमयाजी" with auto-commentary, critically edited by K. V. Sarma, V. V. I., Sadhu Ashram, Hoshiarpur, 1976, pp. xxviii+54.
13. "तन्त्र संग्रह of नीलकण्ठ सोमयाजी" with युक्तिदीपिका and लघुविवृत्ति of शङ्कर Critically edited by K. V. Sarma, V. V. I., Sadhu Ashram, Hoshiarpur, 1977.
--------------------------------------------------------------------
Abbreviations
-------------
J = Julian
G = Gregorian
JDN = Julian Day Number
KDN = Kali Day Number
Julian Calendar: On and before 4 Oct. 1582 AD
Gregorian Calendar: On and after 15 Oct. 1582 AD
--------------------------------------------------------------------
*Note 1:
On 18 Feb 3102 BC, Kali Day No. = 0
On this date Julian Day No. = 588466
----------------------------------------------- TABLE - I ----------------------------------------------- Leap Years JDN on Jan 1 at KDN on Jan 1 at 05:30 PM IST 00:26 AM IST ----------------------------------------------- 4713 BC(J) 0 4401 113958 4001 260058 3601 406158 3201 552258 2801 698358 109892 2401 844458 255992 2001 990558 402092 1601 1136658 548192 1201 1282758 694292 801 1428858 840392 401 1574958 986492 1 BC(J) 1721058 1132592 400 AD(J) 1867158 1278692 800 2013258 1424792 1200 2159358 1570892 1600 AD(G) 2305448 1716982 2000 2451545 1863079 2400 2597642 2009176 2800 2743739 2155273 3200 2889836 2301370 -------------------------------------------- ---------------------------------------- TABLE - II ---------------------------------------- No. of days for additional years from any leap year in TABLE - I ---------------------------------------- Before 1600 AD From 1600 AD onwards ---------------------------------------- Years Days Years Days 100 36525 100 36525 200 73050 200 73049 300 109575 300 109573 400 146100 400 146097 --------------------------------------- --------------------------------------- TABLE - III --------------------------------------- No. of days for additional years after any leap year --------------------------------------- Years Days --------------------------------------- 4 1461 8 2922 12 4383 16 5844 20 7305 24 8766 28 10227 32 11688 36 13149 40 14610 44 16071 48 17532 52 18993 56 20454 60 21915 64 23376 68 24837 72 26298 76 27759 80 29220 84 30681 88 32142 92 33603 96 35064 100 36525 ------------------------------------ ------------------------------------ TABLE -IV ------------------------------------ No. of days for additional years after any leap year ------------------------------------ Month Additional years ----> 0 1 2 3 ------------------------------------ Jan 1 0 366 731 1096 Feb 1 31 397 762 1127 Mar 1 60 426 790 1155 Apr 1 91 457 821 1186 May 1 121 487 851 1216 Jun 1 152 518 882 1247 Jul 1 182 548 912 1277 Aug 1 213 579 943 1308 Sep 1 244 610 974 1339 Oct 1 274 640 1004 1369 Nov 1 305 671 1035 1400 Dec 1 335 701 1065 1430 -----------------------------------
Note 2: While using table-III, subtract 1 day from each of the additional days, if additional years are taken after some common century year (e.g. 1900)
Note 3: If additional years are taken just after a common century year (e.g. 1700, 1800, 1900, 2100 etc.) without using table-III, then subtract 1 day from each of the numbers 60 to 1430 in Table-IV
Note 4: If Julian Day No./Kali Day No. is required for any date in the range 15 oct. 1582 to 31 Dec. 1599 , then subtract 10 days from the final result obtained by using Tables I to IV.
--------------------------------------------------------------------
Ex. 1 : Find JDN and KDN on 15 Mar, 556 BC
556 BC = 801 BC + (801-556) Years = 801 BC + 245 Y.
15 Mar, 556 BC = 801 BC + 200 Y + 44 Y + 1 Y + Mar 1 + 14 Days
JDN = 1428858 + 73050 + 16071 + 425 + 14 = 1518418 (Sunday)
KDN = JDN-588466 = 929952
Ex. 2 : 1 Jan. 1 AD = 1 BC + 1 Y + Jan 1
JDN = 1721058 + 366 = 1721424 (Saturday)
KDN = JDN-588466 = 1132958
Ex. 3 : 16 May, 1583 = 1200 AD + 300 Y + 80 Y + 3 Y + May 1 + 15 Days
JDN = 2159358 + 109575 + 29220 + 1216 + 15 - 10 (NOTE 4)
= 2299374 (Monday):
KDN = JDN - 588466 = 1710908
Ex. 4 : 5 Mar, 1902 = 1600 AD + 300 Y + 2 Y + 3 Y + Mar 1 + 4 Days
JDN = 2305448 + 109573 + (790 -1) + 4 (NOTE 3) = 2415814 (Wednesday)
KDN = JDN - 588466 = 1827348
Ex. 5 : 4 Nov, 1998 = 1600 AD + 300 Y + 96 Y + 2 Y + Nov 1 + 3 Days
JDN = 2305448 + 109573 + (790 -1) + 35064 + (1035 - 1) + 3 (NOTE 2)
= 2451122 (Wednesday)
KDN = JDN - 588466 = 1862656
--------------------------------------------------------------------
Weekday (Midnight to Midnight)
--------------------------------------------------------------------
Using JDN :
Divide JDN by 7. If the remainder is 0, it is Monday, 1 Tuesday and so on.
Using KDN :
Divide KDN by 7. If the remainder is 0, it is Friday, 1 Saturday and so on.
--------------------------------------------------------------------
[प्रकाशित - वेदवाणी, मई 1999, पृ॰13-18 + दो पृष्ठों में उदाहरण सहित चार तालिकाएँ ]
Note 3: If additional years are taken just after a common century year (e.g. 1700, 1800, 1900, 2100 etc.) without using table-III, then subtract 1 day from each of the numbers 60 to 1430 in Table-IV
Note 4: If Julian Day No./Kali Day No. is required for any date in the range 15 oct. 1582 to 31 Dec. 1599 , then subtract 10 days from the final result obtained by using Tables I to IV.
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Ex. 1 : Find JDN and KDN on 15 Mar, 556 BC
556 BC = 801 BC + (801-556) Years = 801 BC + 245 Y.
15 Mar, 556 BC = 801 BC + 200 Y + 44 Y + 1 Y + Mar 1 + 14 Days
JDN = 1428858 + 73050 + 16071 + 425 + 14 = 1518418 (Sunday)
KDN = JDN-588466 = 929952
Ex. 2 : 1 Jan. 1 AD = 1 BC + 1 Y + Jan 1
JDN = 1721058 + 366 = 1721424 (Saturday)
KDN = JDN-588466 = 1132958
Ex. 3 : 16 May, 1583 = 1200 AD + 300 Y + 80 Y + 3 Y + May 1 + 15 Days
JDN = 2159358 + 109575 + 29220 + 1216 + 15 - 10 (NOTE 4)
= 2299374 (Monday):
KDN = JDN - 588466 = 1710908
Ex. 4 : 5 Mar, 1902 = 1600 AD + 300 Y + 2 Y + 3 Y + Mar 1 + 4 Days
JDN = 2305448 + 109573 + (790 -1) + 4 (NOTE 3) = 2415814 (Wednesday)
KDN = JDN - 588466 = 1827348
Ex. 5 : 4 Nov, 1998 = 1600 AD + 300 Y + 96 Y + 2 Y + Nov 1 + 3 Days
JDN = 2305448 + 109573 + (790 -1) + 35064 + (1035 - 1) + 3 (NOTE 2)
= 2451122 (Wednesday)
KDN = JDN - 588466 = 1862656
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Weekday (Midnight to Midnight)
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Using JDN :
Divide JDN by 7. If the remainder is 0, it is Monday, 1 Tuesday and so on.
Using KDN :
Divide KDN by 7. If the remainder is 0, it is Friday, 1 Saturday and so on.
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[प्रकाशित - वेदवाणी, मई 1999, पृ॰13-18 + दो पृष्ठों में उदाहरण सहित चार तालिकाएँ ]
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